#WorldEnvironmentDay जो धरा कभी माँ कहलायी, सन्त

"#WorldEnvironmentDay जो धरा कभी माँ कहलायी, सन्तानों ने उसकी हालत बिगड़ायी!! खोल के अपने कान के द्वार को सुन लो इसकी दर्द से बिलखते चित्कार को, जल रहे है वन देखो, बहते धुएं पवन देखो!! कभी स्वच्छ निर्मल ये नदियाँ, अब बह रही जैसे गंदे नालियाँ!! अब मिट्टी मे ना जान रहा, कारण रासायन रहा!! हमने अपनी आबादी में धरती को वीरान किया!! इसे उजाड़ कर हम स्वार्थी, ऊँचा झूठा स्वाभिमान किया!! खोयी हुई है चेतना, वक्त रहते है जागना, तुम भी अगर दूसरों पे छोड़ दो, मुश्किल हो जाएगा रोकना!! ले रही बिक्राल रुप, ये काल का पैगाम है!! हो किस नशे में चूर तुम सर के ऊपर क्यों जाम है!! अश्क बहती है अब शोक के सलफ्यूरिक अम्ल से भर के, आपनी खोयी बजूद ये मांगती आँचल भर दो स्वच्छ हरियाली डाल के!! रहे स्वच्छ ये नदियाँ प्यारी हरियाली भरी धरा हमारी, अब शपथ सब एक ठान लो, धात्री प्रकृति को सम्मान दो!! ~ चिरंजीत 'बेपरवाह' ©ᴄʜɪʀᴀɴᴊɪᴛ❌"

 #WorldEnvironmentDay 

जो धरा कभी माँ कहलायी,
सन्तानों ने उसकी हालत बिगड़ायी!!
खोल के अपने कान के द्वार को
सुन लो इसकी दर्द से बिलखते चित्कार को,
जल रहे है वन देखो,
बहते धुएं पवन देखो!!
कभी स्वच्छ निर्मल ये नदियाँ,
अब बह रही जैसे गंदे नालियाँ!!
अब मिट्टी मे ना जान रहा,
कारण रासायन रहा!!
हमने अपनी आबादी में
धरती को वीरान किया!!
इसे उजाड़ कर हम स्वार्थी,
ऊँचा झूठा स्वाभिमान किया!!
खोयी हुई है चेतना,
वक्त रहते है जागना,
तुम भी अगर दूसरों पे छोड़ दो,
मुश्किल हो जाएगा रोकना!!
ले रही बिक्राल रुप,
ये काल का पैगाम है!!
हो किस नशे में चूर तुम
सर के ऊपर क्यों जाम है!!
अश्क बहती है अब शोक के
सलफ्यूरिक अम्ल से भर के,
आपनी खोयी बजूद ये मांगती
आँचल भर दो स्वच्छ हरियाली डाल के!!
रहे स्वच्छ ये नदियाँ प्यारी
हरियाली भरी धरा हमारी,
अब शपथ सब एक ठान लो,
धात्री प्रकृति को सम्मान दो!!
                   ~ चिरंजीत 'बेपरवाह'

©ᴄʜɪʀᴀɴᴊɪᴛ❌

#WorldEnvironmentDay जो धरा कभी माँ कहलायी, सन्तानों ने उसकी हालत बिगड़ायी!! खोल के अपने कान के द्वार को सुन लो इसकी दर्द से बिलखते चित्कार को, जल रहे है वन देखो, बहते धुएं पवन देखो!! कभी स्वच्छ निर्मल ये नदियाँ, अब बह रही जैसे गंदे नालियाँ!! अब मिट्टी मे ना जान रहा, कारण रासायन रहा!! हमने अपनी आबादी में धरती को वीरान किया!! इसे उजाड़ कर हम स्वार्थी, ऊँचा झूठा स्वाभिमान किया!! खोयी हुई है चेतना, वक्त रहते है जागना, तुम भी अगर दूसरों पे छोड़ दो, मुश्किल हो जाएगा रोकना!! ले रही बिक्राल रुप, ये काल का पैगाम है!! हो किस नशे में चूर तुम सर के ऊपर क्यों जाम है!! अश्क बहती है अब शोक के सलफ्यूरिक अम्ल से भर के, आपनी खोयी बजूद ये मांगती आँचल भर दो स्वच्छ हरियाली डाल के!! रहे स्वच्छ ये नदियाँ प्यारी हरियाली भरी धरा हमारी, अब शपथ सब एक ठान लो, धात्री प्रकृति को सम्मान दो!! ~ चिरंजीत 'बेपरवाह' ©ᴄʜɪʀᴀɴᴊɪᴛ❌

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