इक दौर ए मकबुलियत देखी है। हमने सबकी सहूलियत देखी | हिंदी शायरी

"इक दौर ए मकबुलियत देखी है। हमने सबकी सहूलियत देखी है। आप निगाहों से गुफ्तगू करते हो। ग़ज़ब आपकी मासूमियत देखी है। आग से आग बुझाने की चाहत है। दुश्मनों की भी खूब नियत देखी है। वतन के दुश्मन अपने ही वतन वाले है यकीं मानो ऐसी भी जमहूरियत देखी है। यूं बोतलों को क्यूं उछालते हो जय। जवानी में हमनें भी रंगीनियत देखी है। ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri""

 इक दौर ए मकबुलियत देखी है।
हमने सबकी सहूलियत देखी है।

आप निगाहों से गुफ्तगू करते हो।
ग़ज़ब आपकी मासूमियत देखी है।

आग से आग बुझाने की चाहत है।
दुश्मनों की भी खूब नियत देखी है।

वतन के दुश्मन अपने ही वतन वाले है
यकीं मानो ऐसी भी जमहूरियत देखी है।

यूं बोतलों को क्यूं उछालते हो जय।
जवानी में हमनें भी रंगीनियत देखी है।

©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"

इक दौर ए मकबुलियत देखी है। हमने सबकी सहूलियत देखी है। आप निगाहों से गुफ्तगू करते हो। ग़ज़ब आपकी मासूमियत देखी है। आग से आग बुझाने की चाहत है। दुश्मनों की भी खूब नियत देखी है। वतन के दुश्मन अपने ही वतन वाले है यकीं मानो ऐसी भी जमहूरियत देखी है। यूं बोतलों को क्यूं उछालते हो जय। जवानी में हमनें भी रंगीनियत देखी है। ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"

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