दिशा देने वाले ही कर रहे दिशा भूल !
सरे आम झोंकी जा रही आंखों में धूल !!
सरकारें मान चुकी रोजगार की कमी है !
इसीलिए भावी पीढ़ी की आंखों में नमी है !!
खरबों रूपये अमीरों को बांटे जा रहे !
छोटी मोटी रकम दे दीनों को बहला रहे !!
युवाओं को उच्च शिक्षा से वंचित रखा जा रहा !
सीटों को सीमित कर नेता शिक्षण के आड़े आ रहा !!
देश में बीमारियां बेशुमार बढ़ रही !
इसीलिए डॉक्टरों की जरूरत भी बढ़ रही !!
डाक्टरों को पढ़ाने की अनुमति सीमित है !
इसीलिए सीटें पाने के लिए करोड़ों की जरूरत है !!
बीमारियों को बढ़ने से रोकने पर ध्यान ही नहीं !
उल्टे इनकी बढ़ौतरी हेतु मिलावट चहुं ओर ही !!
नर्सरी केजी पहली दूसरी की फीस भी लाखों में !
सारी कमाई स्वाह हो जाती बच्चों को पढ़ाने में !!
शादियां उम्रदराजी के बाद होने लगी है !
ऐसी जोड़ियां दैहिक आकर्षण ही खोने लगी है !!
समुचित समागम अभाव में संतानोत्पत्ति सहजता से नहीं हो पाती !
देरी होते देख वैज्ञानिक विधियों में जोड़ियां लाखों गंवाती !!
प्रसूति भी अधिकतर पेट फाड़ के की जाने लगी है !
अधिक कमाने की होड़ में डॉक्टरी ये प्रथा अपनाने लगी है !!
चारों ओर से लूट का शिकार होती जोड़ियां लड़ पड़ती है !
लड़ाई बढ़ते ही तलाक़ की भूमिका बनने लगती है !!
दोनों कमाते एकल परिवार में संसार आई से नहीं आया से आते हैं !
दंपत्ति अक्सर माया के फेर में पड़ प्रेम मोहब्बत भूल ही जाते हैं !!
बाबा भोपे पग पग पर बरगलाने को चहुं ओर फैले हैं !
अंधविश्वास बढ़ा के झमेलों में उलझा लोगों के जीवन से खेले हैं !!
युवाओं को जुए सट्टे नशे पत्ते में उलझा पंगु बनाया जा रहा !
एकाध क्रांति की सोच भी ले, तो भी कोई साथ न आ रहा !!
-आवेश हिन्दुस्तानी 20.08.2024
©Ashok Mangal
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