White कब तक😪 आंगन की किलकारियां क्यों सिसकियों मे | हिंदी कविता Video

"White कब तक😪 आंगन की किलकारियां क्यों सिसकियों में बदलतीं हैं? मेरे ही चश्में के शीशे मेरे आंखों में चुभतीं हैं। कभी पैरों पर खड़ी मै आज फर्श पर पड़ी थी मैं। मेरे जिस्म के लहू बताते हैं दरिंदों से कितना लड़ी थी मैं। मेरे कंठ की पुकार से कितनों को हंसाया मैंने । तोड़ गई वही गर्दन हाय कितना चिल्लाया मैंने। बदन तो मैंने ढका ही था मर्यादित मेरी काया थी। बताओ ना मेरी गलती अभी क्यों मंडराई बुरा साया थी? अरे मां ने कहा पापा ने कहा शिक्षक ने भी तो कहा था सच बोलो,,सच के लिए बोलो सच बोली तो मार दी गई मैं झुकी नहीं तो लुट ली गई मैं। हैवानियत का जनाजा कब निकलोगे दोस्तों? मोमबत्तियां बहुत जला ली हैवानों को कब जलाओगे दोस्तों? निर्भया की नजरों में भय का ठिकाना गूंजता है। इस दरिंदगी से हमें कब बचाओगे दोस्तों? जिस्म मेरा मर गया आत्मा रो रही है अब तक। मिलने से रही मुक्ति दोषी आजाद हैं जबतक दोषी आजाद हैं जबतक हर्षा मिश्रा रायपुर ©harsha mishra "

White कब तक😪 आंगन की किलकारियां क्यों सिसकियों में बदलतीं हैं? मेरे ही चश्में के शीशे मेरे आंखों में चुभतीं हैं। कभी पैरों पर खड़ी मै आज फर्श पर पड़ी थी मैं। मेरे जिस्म के लहू बताते हैं दरिंदों से कितना लड़ी थी मैं। मेरे कंठ की पुकार से कितनों को हंसाया मैंने । तोड़ गई वही गर्दन हाय कितना चिल्लाया मैंने। बदन तो मैंने ढका ही था मर्यादित मेरी काया थी। बताओ ना मेरी गलती अभी क्यों मंडराई बुरा साया थी? अरे मां ने कहा पापा ने कहा शिक्षक ने भी तो कहा था सच बोलो,,सच के लिए बोलो सच बोली तो मार दी गई मैं झुकी नहीं तो लुट ली गई मैं। हैवानियत का जनाजा कब निकलोगे दोस्तों? मोमबत्तियां बहुत जला ली हैवानों को कब जलाओगे दोस्तों? निर्भया की नजरों में भय का ठिकाना गूंजता है। इस दरिंदगी से हमें कब बचाओगे दोस्तों? जिस्म मेरा मर गया आत्मा रो रही है अब तक। मिलने से रही मुक्ति दोषी आजाद हैं जबतक दोषी आजाद हैं जबतक हर्षा मिश्रा रायपुर ©harsha mishra

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