छुपाते-छुपाते जिगर का जख़्म और भी ज्यादा हो गया। | हिंदी शायरी

"छुपाते-छुपाते जिगर का जख़्म और भी ज्यादा हो गया। मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया। कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो, मेरे हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया। ©Nalini Sai"

 छुपाते-छुपाते जिगर का  जख़्म और भी ज्यादा हो गया।
मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया।
कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो,
मेरे  हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया।

©Nalini Sai

छुपाते-छुपाते जिगर का जख़्म और भी ज्यादा हो गया। मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया। कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो, मेरे हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया। ©Nalini Sai

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