Nalini Sai

Nalini Sai Lives in Bengaluru, Karnataka, India

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छुपाते-छुपाते जिगर का जख़्म और भी ज्यादा हो गया। मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया। कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो, मेरे हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया। ©Nalini Sai

#शायरी  छुपाते-छुपाते जिगर का  जख़्म और भी ज्यादा हो गया।
मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया।
कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो,
मेरे  हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया।

©Nalini Sai

छुपाते-छुपाते जिगर का जख़्म और भी ज्यादा हो गया। मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया। कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो, मेरे हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया। ©Nalini Sai

5 Love

ज़रा सी मोहलत मिलते ही आँसू पलकों से गिरना चाहता है। मुस्कराहट को कुछ समय तक चौखट पर वो रखना चाहता है। दुनिया को गुमराह करने का चलन टूटने वाला है आजकल, उर का घाव भर जाते ही आँखो में फिर वो सिमटना चाहता है। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

#शायरी  ज़रा सी  मोहलत मिलते  ही आँसू पलकों  से गिरना चाहता है।
मुस्कराहट को कुछ समय तक चौखट  पर वो रखना चाहता है।
दुनिया को  गुमराह  करने  का  चलन टूटने वाला है आजकल,
उर का घाव भर जाते ही आँखो में फिर वो सिमटना चाहता है।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai

ज़रा सी मोहलत मिलते ही आँसू पलकों से गिरना चाहता है। मुस्कराहट को कुछ समय तक चौखट पर वो रखना चाहता है। दुनिया को गुमराह करने का चलन टूटने वाला है आजकल, उर का घाव भर जाते ही आँखो में फिर वो सिमटना चाहता है। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

3 Love

बहुत ही उत्सुक है कान्हा मुझसे बिछड़ने के लिए । कैसे मनाऊँ मैं मेरे नादान दिल को धड़कने के लिए । होंठों की मुस्कान हृदय के घाव को तो छुपा लेती है , लेकिन तरस रही हैं मेरी सूखी आँखें बरसने के लिए। ✍️साई नलिनी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ दोस्तों,,, राधे राधे जी 🙏🌹🙏 ©Nalini Sai

#शायरी  बहुत ही  उत्सुक है  कान्हा मुझसे बिछड़ने के लिए ।
कैसे मनाऊँ मैं मेरे नादान दिल को धड़कने के लिए ।
होंठों की मुस्कान हृदय के घाव को तो छुपा लेती है ,
लेकिन तरस रही हैं मेरी सूखी आँखें बरसने के लिए।

✍️साई नलिनी 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ दोस्तों,,, 
राधे राधे जी 🙏🌹🙏

©Nalini Sai

बहुत ही उत्सुक है कान्हा मुझसे बिछड़ने के लिए । कैसे मनाऊँ मैं मेरे नादान दिल को धड़कने के लिए । होंठों की मुस्कान हृदय के घाव को तो छुपा लेती है , लेकिन तरस रही हैं मेरी सूखी आँखें बरसने के लिए। ✍️साई नलिनी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ दोस्तों,,, राधे राधे जी 🙏🌹🙏 ©Nalini Sai

5 Love

धरती पर हरेक इनसान नया नया लेता है जनम जाग जाने के बाद। दूर भागता है तम,अकसर गुम हो जाता है वहम जाग जाने के बाद। लूटकर अपनों का प्यार, जी भर के जी लेता है वो ख़्वाबों में,इसीलिए कभी हँसती हैं उसकी आँखें, कभी रहती है नम जाग जाने के बाद। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

#शायरी  धरती पर हरेक  इनसान नया नया लेता है जनम जाग जाने के बाद।
दूर भागता है तम,अकसर गुम हो जाता है  वहम जाग जाने के बाद।
लूटकर  अपनों  का प्यार, जी  भर के  जी  लेता है वो ख़्वाबों में,इसीलिए
कभी  हँसती हैं उसकी आँखें, कभी रहती है नम जाग जाने के बाद।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai

धरती पर हरेक इनसान नया नया लेता है जनम जाग जाने के बाद। दूर भागता है तम,अकसर गुम हो जाता है वहम जाग जाने के बाद। लूटकर अपनों का प्यार, जी भर के जी लेता है वो ख़्वाबों में,इसीलिए कभी हँसती हैं उसकी आँखें, कभी रहती है नम जाग जाने के बाद। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

5 Love

दूर तक पसरी हुई रात की तन्हाई हूँ मैं। ख़ाली नजरों में ठहरी रही परछाईं हूँ मैं। ताल्लुक़ टूट गया है मतलबी दुनिया से , हर सहन में बजती रही वह शहनाई हूँ मैं। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

 दूर तक  पसरी हुई  रात  की तन्हाई हूँ मैं।
ख़ाली  नजरों में  ठहरी रही परछाईं हूँ मैं।
ताल्लुक़ टूट गया है  मतलबी  दुनिया  से ,
हर सहन में बजती रही वह शहनाई हूँ मैं।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai

दूर तक पसरी हुई रात की तन्हाई हूँ मैं। ख़ाली नजरों में ठहरी रही परछाईं हूँ मैं। ताल्लुक़ टूट गया है मतलबी दुनिया से , हर सहन में बजती रही वह शहनाई हूँ मैं। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

8 Love

उस जश्न में हम भी शामिल थे,पर दिल श्रांत लगने लगा। देखते ही देखते वहाँ के माहौल हमें अशांत लगने लगा। महफ़िल में मेहमानों का हम कैसे रख सकते थे ख़याल, खुद को ढूँढते -ढूँढते यह जगत ही हमें भ्रांत लगने लगा। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

#शायरी  उस जश्न में हम भी शामिल थे,पर दिल श्रांत लगने लगा। 
देखते  ही देखते  वहाँ के माहौल हमें अशांत लगने लगा।
महफ़िल में मेहमानों का हम कैसे  रख सकते थे ख़याल,
खुद को ढूँढते -ढूँढते यह जगत ही हमें भ्रांत लगने लगा।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai

उस जश्न में हम भी शामिल थे,पर दिल श्रांत लगने लगा। देखते ही देखते वहाँ के माहौल हमें अशांत लगने लगा। महफ़िल में मेहमानों का हम कैसे रख सकते थे ख़याल, खुद को ढूँढते -ढूँढते यह जगत ही हमें भ्रांत लगने लगा। ✍️साई नलिनी ©Nalini Sai

6 Love

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