White दिन भर की थकान- जुस्तजू
एक सुकून जब खुला आसमान
छत से देखता हूं .
अनेकों तारों का झुंड बतिया रहा हो
या गा रहा हो खुशियों के गीत
अनजाने प्यार में .
अंधेरों को चिरता हुआ प्रकाश
मानो वहां हर रात कोई
त्यौहार का उत्सव होता है
खुशियों का भी
दुख का भी उत्सव .
और दूसरी तरफ हम हैं
हमें खुशियां तय करने में वक्त लग जाता है
अड़ोस - पड़ोस समाज और फिर रिश्तेदार
कौन सी खुशियां कैसी और कब मनाएं .
और रात -
खुद में अधूरी सी होकर सिमट जाती है .
उन सबको -
खुशियां तय करने में वक्त लग जाता है.
इसलिए दीए नहीं जलते हमारे यहां
थकान में उठते हैं
और थकान में ही सो जाते हैं.
©Naveen Goswami
#sawan_2024