White ग़ज़ल
तुमको हर इक दुआ में ही माँगा तो मैंने था
रुकना नहीं था तुमको पुकारा तो मैंने था
शायद तुम्हें न याद हो अब नाम भी मेरा
तुमने तो सिर्फ़ चाहा था पूजा तो मैंने था
रो- रो के अब्र ने तो समंदर भरे हैं बस
इससे ज़ियादा हिज्र में रोया तो मैंने था
तूफ़ाँ से इनमें अब भी मचलते हैं रात दिन
आँखों से तेरा ख़्वाब वो देखा तो मैंने था
तुम हो गए किसी के तुम्हारा हुआ कोई
इस ज़िंदगी के खेल में खोया तो मैंने था
जाने कहाँ से आज ये फिर दर्द सा उठा
हाथों से अपने काँटा निकाला तो मैंने था
ग़ज़लों को मिल रही है ये किस बात की सज़ा
काँटों से जबकि दिल ये लगाया तो मैंने था
अब क्या ग़ज़ब कि कोई नमक भर गया 'धरम'
दुनिया को ज़ख़्म खुद ही दिखाया तो मैंने था
@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'
©Dharmendra Azad