Dharmendra Azad

Dharmendra Azad Lives in Tendukheda, Madhya Pradesh, India

धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' शिक्षा- एम ए (हिन्दी साहित्य) प्रकाशन- उन्नयन, शेष , कथाबिंब, कादम्बनी एवं अन्य पत्रिकाओं में । दो कविता संग्रह 'उसके बारे में ' एवं 'ओ माय लव' , एक कथा संग्रह 'आकल्प' तथा एक गजल संग्रह 'उनकी यादों के उजाले' प्रकाशित। साहित्यिक लघु पत्रिका "ज्ञानपुंज" का सम्पादन-प्रकाशन , फिलहाल स्थगित । सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन सम्पर्क- आजाद प्रकाशन तेन्दुखेड़ा-487337 जिला- नरसिंहपुर (म प्र)

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White ग़ज़ल लौटकर चाहे न देखें बेरुखी से जाने वाले ज़िंदगी से कब गए हैं ज़िंदगी से जाने वाले दिल जिगर में बस गए हो तो उसूलों पर ही रहना दुश्मनी से भी गए हैं दोस्ती से जाने वाले शर्त तो कोई नहीं थी हाँ मगर ये जिद रही है ख़्वाब से भी दूर हों पाकीज़गी से जाने वाले जो समंदर से गए वो तिश्नगी भी साथ लाए प्यास भी अपनी बहा आए नदी से जाने वाले नाम से तेरे अभी तक इस तरह बदनाम हूँ मैं खोजते हर सू मुझे तेरी गली से जाने वाले और तो कुछ भी नहीं बस रंज इतना भर रहा है दिल की चीखें सुन भी जाते ख़ामुशी से जाने वाले @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी #love_shayari  White ग़ज़ल 

लौटकर चाहे न देखें बेरुखी से जाने वाले 
ज़िंदगी से कब गए हैं ज़िंदगी से जाने वाले 

दिल जिगर में बस गए हो तो उसूलों पर ही रहना 
दुश्मनी से भी गए हैं दोस्ती से जाने वाले 

शर्त तो कोई नहीं थी हाँ मगर ये जिद रही है 
ख़्वाब से भी दूर हों पाकीज़गी से जाने वाले 

जो समंदर से गए वो तिश्नगी भी साथ लाए 
प्यास भी अपनी बहा आए नदी से जाने वाले 

नाम से तेरे अभी तक इस तरह बदनाम हूँ मैं 
खोजते हर सू मुझे तेरी गली से जाने वाले 

और तो कुछ भी नहीं बस रंज इतना भर रहा है 
दिल की चीखें सुन भी जाते ख़ामुशी से जाने वाले 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

#love_shayari

16 Love

White ग़ज़ल तुमको हर इक दुआ में ही माँगा तो मैंने था रुकना नहीं था तुमको पुकारा तो मैंने था शायद तुम्हें न याद हो अब नाम भी मेरा तुमने तो सिर्फ़ चाहा था पूजा तो मैंने था रो- रो के अब्र ने तो समंदर भरे हैं बस इससे ज़ियादा हिज्र में रोया तो मैंने था तूफ़ाँ से इनमें अब भी मचलते हैं रात दिन आँखों से तेरा ख़्वाब वो देखा तो मैंने था तुम हो गए किसी के तुम्हारा हुआ कोई इस ज़िंदगी के खेल में खोया तो मैंने था जाने कहाँ से आज ये फिर दर्द सा उठा हाथों से अपने काँटा निकाला तो मैंने था ग़ज़लों को मिल रही है ये किस बात की सज़ा काँटों से जबकि दिल ये लगाया तो मैंने था अब क्या ग़ज़ब कि कोई नमक भर गया 'धरम' दुनिया को ज़ख़्म खुद ही दिखाया तो मैंने था @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी  White ग़ज़ल 

तुमको हर इक दुआ में ही माँगा तो मैंने था 
रुकना नहीं था तुमको पुकारा तो मैंने था 

शायद तुम्हें न याद हो अब नाम भी मेरा 
तुमने तो सिर्फ़ चाहा था पूजा तो मैंने था 

रो- रो के अब्र ने तो समंदर भरे हैं बस 
इससे ज़ियादा हिज्र में रोया तो मैंने था 

तूफ़ाँ से इनमें अब भी मचलते हैं रात दिन 
आँखों से तेरा ख़्वाब वो देखा तो मैंने था 

तुम हो गए किसी के तुम्हारा हुआ कोई 
इस ज़िंदगी के खेल में खोया तो मैंने था 

जाने कहाँ से आज ये फिर दर्द सा उठा 
हाथों से अपने काँटा निकाला तो मैंने था 

ग़ज़लों को मिल रही है ये किस बात की सज़ा 
काँटों से जबकि दिल ये लगाया तो मैंने था 

अब क्या ग़ज़ब कि कोई नमक भर गया 'धरम'
दुनिया को ज़ख़्म खुद ही दिखाया तो मैंने था 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

White ग़ज़ल तुमको हर इक दुआ में ही माँगा तो मैंने था रुकना नहीं था तुमको पुकारा तो मैंने था शायद तुम्हें न याद हो अब नाम भी मेरा तुमने तो सिर्फ़ चाहा था पूजा तो मैंने था रो- रो के अब्र ने तो समंदर भरे हैं बस इससे ज़ियादा हिज्र में रोया तो मैंने था तूफ़ाँ से इनमें अब भी मचलते हैं रात दिन आँखों से तेरा ख़्वाब वो देखा तो मैंने था तुम हो गए किसी के तुम्हारा हुआ कोई इस ज़िंदगी के खेल में खोया तो मैंने था जाने कहाँ से आज ये फिर दर्द सा उठा हाथों से अपने काँटा निकाला तो मैंने था ग़ज़लों को मिल रही है ये किस बात की सज़ा काँटों से जबकि दिल ये लगाया तो मैंने था अब क्या ग़ज़ब कि कोई नमक भर गया 'धरम' दुनिया को ज़ख़्म खुद ही दिखाया तो मैंने था @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

12 Love

White मुहब्बत निभाने के सौ  रास्ते हैं उन्हीं में से है सबसे आसां मुकरना @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी  White मुहब्बत निभाने के सौ  रास्ते हैं 
उन्हीं में से है सबसे आसां मुकरना 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

White मुहब्बत निभाने के सौ  रास्ते हैं उन्हीं में से है सबसे आसां मुकरना @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

13 Love

ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी  ग़ज़ल 

धूप में ही अक्सर खिलता हूँ 
मैं आँसू का इक क़तरा हूँ 

उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ 
जबसे इक अफ़वाह बना हूँ 

बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ 
जब भी पत्थर पर बरसा हूँ 

तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा 
उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ 

तुम तो बस मशहूर हुये हो 
गली-गली तो मैं रुसवा हूँ 

भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम 
आख़िर मैं कितना तनहा हूँ 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

12 Love

ग़ज़ल किसी भी बेवफ़ा से तो वफ़ा भी खुद से धोखा है किसी पत्थर से कोई इल्तिजा भी खुद से धोखा है कोई भी ख़्वाब ऐसा जो मुकम्मल हो नहीं सकता उसे फिर देखना क्या सोचना भी खुद से धोखा है निशाँ क़दमों के तुम अपने मिटाते भी चलो वर्ना अदू के वास्ते तो नक़्श-ए-पा भी खुद से धोखा है तुम्हारे दाग़ को जो तिल कहे ऐबों को ही मस्सा तो ऐसे आईने से सामना भी खुद से धोखा है हजारों कोशिशों के बाद भी जब भर नहीं पाते तो ये लगता है ज़ख़्मों की दवा भी खुद से धोखा है @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी  ग़ज़ल 

किसी भी बेवफ़ा से तो वफ़ा भी खुद से धोखा है 
किसी पत्थर से कोई इल्तिजा भी खुद से धोखा है 

कोई भी ख़्वाब ऐसा जो मुकम्मल हो नहीं सकता 
उसे फिर देखना क्या सोचना भी खुद से धोखा है 

निशाँ क़दमों के तुम अपने मिटाते भी चलो वर्ना 
अदू के वास्ते तो नक़्श-ए-पा भी खुद से धोखा है 

तुम्हारे दाग़ को जो तिल कहे ऐबों को ही मस्सा 
तो ऐसे आईने से सामना भी खुद से धोखा है 

हजारों कोशिशों के बाद भी जब भर नहीं पाते 
तो ये लगता है ज़ख़्मों की दवा भी खुद से धोखा है 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

ग़ज़ल किसी भी बेवफ़ा से तो वफ़ा भी खुद से धोखा है किसी पत्थर से कोई इल्तिजा भी खुद से धोखा है कोई भी ख़्वाब ऐसा जो मुकम्मल हो नहीं सकता उसे फिर देखना क्या सोचना भी खुद से धोखा है निशाँ क़दमों के तुम अपने मिटाते भी चलो वर्ना अदू के वास्ते तो नक़्श-ए-पा भी खुद से धोखा है तुम्हारे दाग़ को जो तिल कहे ऐबों को ही मस्सा तो ऐसे आईने से सामना भी खुद से धोखा है हजारों कोशिशों के बाद भी जब भर नहीं पाते तो ये लगता है ज़ख़्मों की दवा भी खुद से धोखा है @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

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हों खुशियों के सारे ही पल छिन मुबारक ! तुम्हें हो तुम्हारा जनम दिन मुबारक  !! @धर्मेन्द्र 'आज़ाद' . . . . . . ©Dharmendra Azad

#शायरी  हों खुशियों के सारे ही पल छिन मुबारक !
तुम्हें हो तुम्हारा जनम दिन मुबारक  !! 

@धर्मेन्द्र 'आज़ाद'

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हों खुशियों के सारे ही पल छिन मुबारक ! तुम्हें हो तुम्हारा जनम दिन मुबारक  !! @धर्मेन्द्र 'आज़ाद' . . . . . . ©Dharmendra Azad

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