ये हम-साए चलें जाएं तो बस्तियाँ विरान हो जाएंगे,
वो हिन्दू हो जाएंगे हम मुसलमान हो जाएंगे...
ज़रा मुसकरा कर कहो के मुहब्बत है,
बा-ख़ुदा हर मुश्किल आसान हो जाएंगे...
किसी के बेहद करीब आकर ये जाना हमनें,
बहुत नज़दीकियों से हम परेशान हो जाएंगे...
ये सबा, ये समर, ये शजर, ये ग़ुलिसताँ सारे,
हम न होगें तो क्या विरान हो जाएंगे...?
कुछ रोज़ को अपनी कहानी के किरदार रहते हैं लोग,
फिर फकत किसी ग़ज़ल का उनवान हो जाएंगे...
©Saif Azam
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