Saif Azam

Saif Azam Lives in New Delhi, Delhi, India

one of the greatest urdu poet you will ever meet.

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#walkalone   कोई  बात समझाने मे कमी रह गई, 
मैं उसको देखता वो मुझको देखती रह गई...

इक उम्र की हयात का है ये वजीफा अपना,
चंद पन्नों मे कुछ अधूरी सी शायरी रह गई...

निकल आओ अपने अंदर से के शब हो चली, 
चाँद तन्हा हो जैसे के गोया फकत चाँदनी रह गई...

©Saif Azam

#walkalone

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#शायरी #Shayar #Hindi #Poet #urdu #Art   मेरे चारसू मातम ही मातम है,
मैं इस दौर मे ज़िन्दा हूँ मुझको ग़म है...

मैं क्या कलाम लिखूँ की ये जंग रूक जाए,
मिरी तेग़ तो बस यही मेरी कलम है...

मैं उससे जीत जाऊँगा वो मुझसे हार जाएगा,
हर किसी के अपने-अपने वहम है...

आने वाली नस्लें इसकी कर्ज़ अदा करेंगी,
आज की तबाही का जो ये आलम है...

हैं बहुत सी शिकायतें मुझको इस जहाँ से,
गो रौशनी कम है, ज़िन्दगी कम है...

©Saif Azam
#शायरी #ghazal #Shayar #Hindi #Poet #urdu   ये हम-साए चलें जाएं तो बस्तियाँ विरान हो जाएंगे,
वो हिन्दू हो जाएंगे हम मुसलमान हो जाएंगे...

ज़रा मुसकरा कर कहो के मुहब्बत है,
बा-ख़ुदा हर मुश्किल आसान हो जाएंगे...

किसी के बेहद करीब आकर ये जाना हमनें,
बहुत नज़दीकियों से हम परेशान हो जाएंगे...

ये सबा, ये समर, ये शजर, ये ग़ुलिसताँ सारे,
हम न होगें तो क्या विरान हो जाएंगे...?

कुछ रोज़ को अपनी कहानी के किरदार रहते हैं लोग,
फिर फकत किसी ग़ज़ल का उनवान हो जाएंगे...

©Saif Azam
#शायरी #hindi_poetry #urdushayari #urdu_poetry #hindi_poem #shayaari   मंज़िल है नज़र मे और शिकस्त-पाई है,
अच्छी किस्मत है अपनी अच्छी ख़ुदाई है...

हमने ये कब कहा के हम हैं मसीहा-नफ्स,
आदमी हैं हम और सद हममें बुराई है...

तन्हा जीतें हैं तन्हा मर जातें हैं लोग, 
कैसी वहशत है कैसी तन्हाई है...

वो के जो साथ अपने अक्सर सफर मे रहा,
लाज़िम है के वो अपनी ही परछाई है...

हम भी 'आज़म' बज़्म-ए-यार से ऊठ चले,
अब न अपनी वहां तक रसाई है...

©Saif Azam

तंज़ भी सारे बेअसर गए, क्या मेरे चाहनेवाले मर गए...? रात शेख साहब को मयकदे मे देखा था, सुबह होते ही खुदा के घर गए... जिस-जिस पे था दावा मुझको अपने होने का, रोज़-ए-महशर एक-एक कर सारे मुकर गए... रफता-रफता ये हुआ के मेरे आशार मे वो, हर्फ-दर-हर्फ और निखर गए... 'आज़म' के पहलू मे उन्हें तलाशते क्या हो? हज़रत के वो तो कब के मर गए... ©Saif Azam

#eveningtea  तंज़ भी सारे बेअसर गए,
क्या मेरे चाहनेवाले मर गए...?

रात शेख साहब को मयकदे मे देखा था,
सुबह होते ही खुदा के घर गए...

जिस-जिस पे था दावा मुझको अपने होने का,
रोज़-ए-महशर एक-एक कर सारे मुकर गए...

रफता-रफता ये हुआ के मेरे आशार मे वो,
हर्फ-दर-हर्फ और निखर गए...

'आज़म' के पहलू मे उन्हें तलाशते क्या हो?
हज़रत के वो तो कब के मर गए...

©Saif Azam

Azam #eveningtea

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#urdushayari #sher
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