प्यार की खुशी
हमेशा तू छाव बनकर के रहती
वृक्षो की हमको जरूरत न होती
यदि धूप में मैं जल जाऊ तो
तू वर्षा बनकर बरसती तो होती।
तुझ देख कर मुझ को ऐसा लगा
जैसे जमीं पर असमा आ गया
खुशी का ठिकाना न मुझ में रहा
तुझे पाकर मैं पागल हो गया
खुशी की तलाश में गम न मिले
पी न सकूँगा वो जल न मिले
जीना मरना सब तेरे ही संग
अकेले मुझको स्वर्ग भी न मिले ।
मेरे मन के दर्पण में तुही सदा
बदलने से न बदलता अदा
कुछ भी करु मैं योगी भी बने मैं
हटता न चेहरा तेरा मन से सदा ।
कवि शिव शक्ति कुमार
प्यार की ख़ुशी