प्यार की खुशी हमेशा तू छाव बनकर के रहती वृक्षो क

"प्यार की खुशी हमेशा तू छाव बनकर के रहती वृक्षो की हमको जरूरत न होती यदि धूप में मैं जल जाऊ तो तू वर्षा बनकर बरसती तो होती। तुझ देख कर मुझ को ऐसा लगा जैसे जमीं पर असमा आ गया खुशी का ठिकाना न मुझ में रहा तुझे पाकर मैं पागल हो गया खुशी की तलाश में गम न मिले पी न सकूँगा वो जल न मिले जीना मरना सब तेरे ही संग अकेले मुझको स्वर्ग भी न मिले । मेरे मन के दर्पण में तुही सदा बदलने से न बदलता अदा कुछ भी करु मैं योगी भी बने मैं हटता न चेहरा तेरा मन से सदा । कवि शिव शक्ति कुमार"

 प्यार की खुशी 

हमेशा तू छाव बनकर के रहती
वृक्षो की हमको जरूरत न होती
यदि धूप में मैं जल जाऊ तो 
तू वर्षा बनकर बरसती तो होती।

तुझ देख कर मुझ को ऐसा लगा
जैसे जमीं पर असमा आ गया 
खुशी का ठिकाना न मुझ में रहा
तुझे पाकर मैं पागल हो गया

खुशी की तलाश में  गम न मिले
पी न सकूँगा वो जल न मिले
जीना मरना सब तेरे ही संग
 अकेले मुझको स्वर्ग भी  न मिले ।

मेरे  मन के दर्पण  में तुही सदा
बदलने  से  न  बदलता  अदा
कुछ भी करु मैं योगी भी बने मैं
हटता न चेहरा तेरा मन से सदा  ।

कवि  शिव शक्ति कुमार

प्यार की खुशी हमेशा तू छाव बनकर के रहती वृक्षो की हमको जरूरत न होती यदि धूप में मैं जल जाऊ तो तू वर्षा बनकर बरसती तो होती। तुझ देख कर मुझ को ऐसा लगा जैसे जमीं पर असमा आ गया खुशी का ठिकाना न मुझ में रहा तुझे पाकर मैं पागल हो गया खुशी की तलाश में गम न मिले पी न सकूँगा वो जल न मिले जीना मरना सब तेरे ही संग अकेले मुझको स्वर्ग भी न मिले । मेरे मन के दर्पण में तुही सदा बदलने से न बदलता अदा कुछ भी करु मैं योगी भी बने मैं हटता न चेहरा तेरा मन से सदा । कवि शिव शक्ति कुमार

प्यार की ख़ुशी

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