जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होत | हिंदी विचार

"जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होता हैं। ना कोई दोस्त हो ,ना ही कोई परिवार से हो, ना कोई अपना हो, ना अजनबी हों। शायद मैं ऐसी ही हो गई हुं, टूटी हूं, इतनी की चाह कर भी जुड़ नही पा रही हूं। ना अपनेपन की कदर ,ना एहसासों की कदर, ना प्यार की कदर, ना फिक्र की कदर । ना कुर्बानियों की कदर और ना ही इंसान की कदर , बस एसी बन गई हूं ,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं, जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं... ©Naina Nagpal"

 जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होता हैं।
 ना कोई दोस्त हो ,ना ही कोई परिवार से हो, 
ना कोई अपना हो, ना अजनबी हों।
शायद मैं ऐसी ही हो गई हुं, टूटी हूं,
 इतनी की चाह कर भी जुड़ नही पा रही हूं। 
ना अपनेपन की कदर ,ना एहसासों की कदर,
 ना प्यार की कदर, ना फिक्र की कदर ।
ना कुर्बानियों की कदर और ना ही इंसान की कदर ,
 बस एसी बन गई हूं ,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,
जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं...

©Naina Nagpal

जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होता हैं। ना कोई दोस्त हो ,ना ही कोई परिवार से हो, ना कोई अपना हो, ना अजनबी हों। शायद मैं ऐसी ही हो गई हुं, टूटी हूं, इतनी की चाह कर भी जुड़ नही पा रही हूं। ना अपनेपन की कदर ,ना एहसासों की कदर, ना प्यार की कदर, ना फिक्र की कदर । ना कुर्बानियों की कदर और ना ही इंसान की कदर , बस एसी बन गई हूं ,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं, जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं... ©Naina Nagpal

#जैसे_मैं_मूर्ति_बन_गई_हूं
#कदर_नही

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