Naina Nagpal

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उसूल पक्के, दिमाग खराब रंग सावला, दिल साफ

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बाते... जी हां बाते, जो बाते आप किसी को कह नही पाते ना, वो आपको हर रोज थोड़ा थोड़ा खाती जाती है, आपको उकसाती है ,खुद को परेशान करने को, खुद को दुखी करने को, या यू कहूं आपको अंदर ही अंदर मारने को, बाते ना जाने क्यूं ऐसी ही होती है, जो इंसान को सबके बीच अकेला कर देता है, जो आपको तन्हा कर दे,कुछ ऐसी बाते होती है, सबके जहन में, हां जी ये बाते... ©Naina Nagpal

#बातें_अनकही #बात_दिल_की #विचार  बाते...
जी हां बाते,
जो बाते आप किसी को कह नही पाते ना,
वो आपको हर रोज थोड़ा थोड़ा खाती जाती है,
 आपको उकसाती है ,खुद को परेशान करने को, 
खुद को दुखी करने को, या यू कहूं 
आपको अंदर ही अंदर मारने को,
 बाते  ना जाने क्यूं ऐसी ही होती है,
जो इंसान को सबके बीच अकेला कर देता है, 
जो आपको तन्हा कर दे,कुछ ऐसी बाते होती है,
सबके जहन में, हां जी ये बाते...

©Naina Nagpal
#लड़कियां👩🏻_होती_है_समुंद्र🌊_सी #मन_की_बाते🤫 #quoteoftheday✏️ #write_by_me✍🏻 #विचार #thoughts🤔  लड़कियां होती हैं समुंद्र सी
जो देखने में है खूबसूरत, लेकिन अपने आप में कई राज भी लिए होती है।
लड़कियां होती हैं समुंद्र सी
जो अपने अंदर विशालता के साथ गहराई और ठहराव भी लिए होती है।
लड़कियां होती हैं समुंद्र सी
एहसासों के खजाने के साथ साथ सम्मान की भूख भी लिए होती है।
लड़कियां समुंद्र सी नहीं समुंद्र ही होती है 
जो आपको करती है स्वीकार, कई बार मन की ना होने पर तबाही भी कर देती है।
लड़कियां होती हैं समुंद्र ही 
जो कुछ नही रखती अपने पास हमेशा आपका दिया आपको लोटती है।
चाहे हो प्यार, सम्मान, अपमान, पीढ़ा जा खुद से किया गया छल ।
लड़कियां होती हैं समुंद्र ही
जिसे देख के केवल अंदाजा लगाया जा सकता है लेकिन मापना मुमकिन नही होता है
ठीक उसी प्रकार एक लड़की का मन होता है जिसे बस में नहीं किया जाता है 
उसे विश्वास और प्रेम से जीता जा सकता है।
लड़कियां होती हैं समुंद्र सी

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की जैसा समझा गया जो मुझे, मैं वही बन सी गई हूं। की हर वक़्त दिल खोल के बाते करने वाली मैं, अब चुप सी हो गई हूं। नहीं करना साबित खुद को सही गलत, जैसी समझी गई हूं वो ही बन सी गई हूं... ©Naina Nagpal

#जैसा_समझा_गया_वैसी_बन_गई #मन_की_बात #मैं_उदास #विचार  की जैसा समझा गया जो मुझे, मैं वही बन सी गई हूं।
की हर वक़्त दिल खोल के बाते करने वाली मैं,
अब चुप सी हो गई हूं।
नहीं करना साबित खुद को सही गलत, जैसी समझी गई हूं वो ही बन सी गई हूं...

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खुद की तलाश में खुद,ही भटक रही हूँ । मिल जाये अगर किसी को मुझ सी तो बताये कोई,पहचानना है आसन बड़ा ,रूप रंग है मुझ सा ही। है वो नादान सी ,ज़िद्दी सी ,खिलखिलाती सी,करती है जो मनमानियां ही। जो प्यार करे खुद से, वो मासूम सी दिखती है, तलाशा है खुद को जग में ,जहा में, देखा जो आईने तो हुई हैरान हुई हे मैं । ये क्या देखा लिया है मैंने रूप रंग है मुझ सा ही, पर वो तो समझदार सी, पत्थर सी,उदास सी,जो समझे दुनियादारी भी , है वो मुझ सी पर वो मैं नहीं । तलाश अब भी जारी है पर मै वो खुद नहीं, भटक रही हूँ खुद की तलाश मैं खुद ही भटक रही हूँ ©Naina Nagpal

#मैं_की_तलाश_में #आन_कही_बाते #मन_की_बात #विचार  खुद की तलाश में खुद,ही भटक रही हूँ ।

मिल जाये अगर किसी को मुझ सी तो बताये कोई,पहचानना है आसन बड़ा ,रूप रंग है मुझ सा ही।

है वो नादान सी ,ज़िद्दी सी ,खिलखिलाती सी,करती है जो मनमानियां ही।

जो प्यार करे खुद से, वो मासूम सी दिखती है, तलाशा है खुद को जग में ,जहा में, देखा जो आईने तो हुई हैरान हुई हे मैं ।

ये क्या देखा लिया है मैंने रूप रंग है मुझ सा ही, पर  वो तो समझदार सी, पत्थर सी,उदास सी,जो समझे दुनियादारी भी , है वो मुझ सी पर वो मैं नहीं ।

तलाश अब भी जारी है पर मै वो खुद नहीं, भटक रही हूँ खुद की तलाश मैं खुद ही भटक रही हूँ

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#विचार #मंजिल #राहे  ना जाने ये राहे, किस मंजिल तक ले जायेगी,
मंजिल का पता नही, पर राहों में ही मैं खो गई।
इन राहों में सुख- दुःख, आसूं- सुकून ,
अपने- परायों में मैं ऐसी उलझ गई 
की अब मंज़िल की चाह ना रही ,राहों को ही मंजिल समझ रही।

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जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होता हैं। ना कोई दोस्त हो ,ना ही कोई परिवार से हो, ना कोई अपना हो, ना अजनबी हों। शायद मैं ऐसी ही हो गई हुं, टूटी हूं, इतनी की चाह कर भी जुड़ नही पा रही हूं। ना अपनेपन की कदर ,ना एहसासों की कदर, ना प्यार की कदर, ना फिक्र की कदर । ना कुर्बानियों की कदर और ना ही इंसान की कदर , बस एसी बन गई हूं ,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं, जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं... ©Naina Nagpal

#जैसे_मैं_मूर्ति_बन_गई_हूं #कदर_नही #विचार  जिंदगी कि राहों पर जाने क्यू ,अकेले चलने का मन होता हैं।
 ना कोई दोस्त हो ,ना ही कोई परिवार से हो, 
ना कोई अपना हो, ना अजनबी हों।
शायद मैं ऐसी ही हो गई हुं, टूटी हूं,
 इतनी की चाह कर भी जुड़ नही पा रही हूं। 
ना अपनेपन की कदर ,ना एहसासों की कदर,
 ना प्यार की कदर, ना फिक्र की कदर ।
ना कुर्बानियों की कदर और ना ही इंसान की कदर ,
 बस एसी बन गई हूं ,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,
जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं,जैसे मैं मूर्ति बन गई हूं...

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