Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन | हिंदी कविता

"Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का ©विजय"

 Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का
साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का
बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का
टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का

रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का
कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का
अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का
कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का

कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का
पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का
जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का
राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का

रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का
रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का
दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का
शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का

©विजय

Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का ©विजय

#Emotional

People who shared love close

More like this

Trending Topic