रूह मेरे नवाब-ए-सख्स को देखने के लिए रूह कुरबान कर | हिंदी कविता
"रूह मेरे नवाब-ए-सख्स को देखने के लिए
रूह कुरबान करनी होगी आपको
गिरते झरने से नहाई आँखो को
लहू के कतरे से सजानी होगी आपको
इसके बावजूद भी एक सवाल होगा आपसे
रूह देखी है कभी रूह को महसूस किया है..."
रूह मेरे नवाब-ए-सख्स को देखने के लिए
रूह कुरबान करनी होगी आपको
गिरते झरने से नहाई आँखो को
लहू के कतरे से सजानी होगी आपको
इसके बावजूद भी एक सवाल होगा आपसे
रूह देखी है कभी रूह को महसूस किया है...