समुन्दर किनारे बैठे हम आसमाँ को तरसते है. उन पंछि | हिंदी Shayari

"समुन्दर किनारे बैठे हम आसमाँ को तरसते है. उन पंछियों से पूछिए जरा वो क्यूँ मंजीलो से भटकटे है. बदकिस्मत दिल से पूछिए क्यूँ उनकी यादो में धड़कते है उठती लहरों की से पूछिए क्यूँ हमारे अरमान नहीं ठहरते है. उनकी एक नजर को क्यूँ हम दिन रात तरसते है"

 समुन्दर किनारे बैठे हम आसमाँ को तरसते है.

उन पंछियों से पूछिए जरा वो क्यूँ मंजीलो से भटकटे है.

 बदकिस्मत दिल से पूछिए क्यूँ उनकी यादो में धड़कते है 

उठती लहरों की से पूछिए क्यूँ हमारे अरमान नहीं ठहरते है.

उनकी एक नजर को क्यूँ हम दिन रात तरसते है

समुन्दर किनारे बैठे हम आसमाँ को तरसते है. उन पंछियों से पूछिए जरा वो क्यूँ मंजीलो से भटकटे है. बदकिस्मत दिल से पूछिए क्यूँ उनकी यादो में धड़कते है उठती लहरों की से पूछिए क्यूँ हमारे अरमान नहीं ठहरते है. उनकी एक नजर को क्यूँ हम दिन रात तरसते है

समुन्दर किनारे बैठे हम आसमाँ को तरसते है.

उन पंछियों से पूछिए जरा वो क्यूँ मंजीलो से भटकटे है.

बदकिस्मत दिल से पूछिए क्यूँ उनकी यादो में धड़कते है

उठती लहरों की से पूछिए क्यूँ हमारे अरमान नहीं ठहरते है.

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