शिद्दत की गर्मी है फिर भी न जाने क्यूँ बहुत राहत है।
लोग कहते हैं इसमें मौसम की तुझसे बहुत मुहब्बत है।।
गर्म हवाएँ भी खूब हैं जो तुझे जी भर कर चाहे हैं कुछ यूँ।
जैसे इसमें उन हवाओं की सारे जमाने से अदावत है।।
कब तुम आओगी सावन का इक झोंका बनकर?
क्यूँकि मेरी ख्वाहिशों में तेरी इकलौती इबादत है।।
सुबह से शाम हो जाती है तेरा ख्वाब देखते हुए।
जैसे लगता है कि सदियों की कोई पुरानी मन्नत है।।
खामोशी से तुझसे बात करके कितना अच्छा लगता है।
या रब तेरे हुस्न की इस दिल में कितनी इज्जत है।।
एक बात कहें तुमसे अपने मन की कहीं सुन न ले अभिषेक।
हाँ, हमें भी तुझसे बहुत मुहब्बत है, बहुत मुहब्बत है।।
-✍️ अभिषेक यादव
©Abhishek Yadav
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