White ◆◆ बारिशें और तुम्हारी यादें ◆◆
रात के इतने पहर में भी मैंने अभी-अभी चाय बनाया है। बारिश हो रही है, तेज हवाएं बारिश के साथ आईस-पाईस खेल रही हैं। और इस घड़ी में मुझे तुम्हारे साथ बैठकर चाय पीने का मन हो चला है। बादलों की अफवाह का असर सीधा दिल पर हो रहा है। बारिश ने जो तुम्हारे खत पहुचाएं हैं, उनको पढ़ने के लिये मैंने खुद को बूंदों के हवाले कर दिया है। तुम्हारी बेरुखी की स्याही थोड़ी नमी सोख कर बह रही है। मैं उसे छू कर अपनी अनामिका से लिफाफे पर स्वास्तिक बनाता हूँ। इसके बाद तुम्हारे तमाम उलाहने भी पवित्र दिखने लगें हैं। मेरे माथे पर नमी है, दिल में खुश्की और आंखों में तरावट। कोई देखे तो साफ अनुमान लगा सकता है कि मैं किसी की याद में हूँ। मैं बारिश को देखता हूँ और हवा के कान में मंत्र फूंकता हूँ। क्यूँकि! मैं चाहता हूँ कि, बारिश तब तक न थमे जब तुम तुम्हारे मन के गीले होने की खबर बादल मुझ तक न पहुँचा दे।
अभी सोचा! चाय और बारिश दो अजीब से बहाने हैं। जिनके जरिए तुम्हे याद करने का सुअवसर मिल जाता है। लेकिन आज की बारिश में तुम्हारी कसम खाकर कह सकता हूँ कि, मैं बूंदों के बीच खड़ा जरूर हूँ मगर! भीग नही रहा हूँ। मैं केवल कुछ बातें सोच रहा हूँ, बारिश में भीगने के लिए थोड़ा लापरवाह होना पड़ता है। सोचकर केवल हँसा जा सकता है, क्योंकि! रोने की भी अक्सर कोई वजह नही होती है। मेरे पास भीगने की तमाम वजह है और बारिश से बचकर अंदर कमरें में दाखिल होने की एक भी वजह मेरे पास नही है। क्योंकि वहाँ चाय के साथ तुम मेरी प्रतीक्षा में नही हो। तुम फिलहाल कहाँ पर हो? यह बात मुझे बारिश, बादल, हवा, बूँद किसी ने भी नही बताया है। कुछ बूंदें मेरी त्वचा के तापमान से आहत है। शायद! उन्हें मेरे मनुष्य होने पर संदेह है, वो आपस में गुपचुप ढंग से बात करतीं हैं और बादलों पर ताने कसती हैं कि उन्हें मैदान में भी पहाड़ पर क्यों पटक दिया? ठंडी हवा मेरे कान के सबसे निचले हिस्से को मन्दिर की घण्टी की तरह हिलाती है मगर वहाँ कोई ध्वनि नही निकलती है। हवा को मेरे कान के समाधिस्थ होने पर सन्देह है। इसलिए वो बार-बार तुम्हारा नाम लेती है, ताकि! मेरी तन्द्रा टूट सके।
बारिश का गीलापन मन के गलियारे में आकर एक छोटी नदी बन जाता है, फिर यह नदी आँसुओं का एक न्यूमतम जलस्तर को बनाये रखने में मदद करती है। मगर इतनी तरलता के बावजूद भी मन की बंद गलियों से बाहर निकलने के लिए आंसुओं को रास्ता नही मिलता है। वो अंदर ही मेरे लिए पर्याप्त नमी का इंतजाम करते-करते सुख जाते हैं।
मेरा ह्रदय इसलिए भी सबसे खारा है, यह राज आज तुम्हे बारिश के बहाने से बता देता हूँ।
बारिश आई है, मेरे मन का पञ्चाङ्ग इसकी वजह के लिए ग्रहों, नक्षत्रों की गणना करते हुए तुमसे दूरी की प्रकाशवर्ष में कालगणना में लग गया है। मगर एक बड़ी बात है, मेरे पास न दशमलव है, और न ही मेरे पास शून्य है।
ये दोनों अंक तुमने मुझसे कभी उधार लिए थे।
मगर! आज तक नही लौटाए हैं। इसलिए मेरा अनुमान अक्सर गलत सिद्ध हो जाता है, और तुमसे दूरी घटती-बढ़ती जाती है।
फिलहाल!...
बस इतना ही निवेदन करूँगा कि अगली मौसमी बारिश से पहले मुझे मेरा दशमलव और शून्य लौटा देना।
ताकि! किसी बेमौसमी बारिश में तुम्हारी भौतिक दूरी का सही से आंकलन करके मैं कुछ सही भविष्यवाणी कर सकूँ।
खैर!...
बाहर की बारिश थम गई है, मगर अंदर एक झड़ी लगा गई है, कि वो कब थमेगी? कुछ कह नही सकता हूँ, मेरे कान थोड़े ठंडे हो गए हैं, और हथेलियां गर्म। तुम्हारे साथ की चाय पीने से तो अब रही। इसलिए जा रहा हूँ अब खुद अकेले ही चाय पीने। ताकि! घूँट-घूँट तुम्हें याद करता हुआ भूल सकूँ।।🥰😊
-✍️ अभिषेक यादव
©Abhishek Yadav
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