ना धर्मी राम ना ही रंगराशिया शयाम मोहे भावे, न चा | हिंदी Poetry

"ना धर्मी राम ना ही रंगराशिया शयाम मोहे भावे, न चाहूँ मै अग्नि परीक्षा सीता सी, न राधा सी विरह मैं चाहूँ इतनी विनती है मोहि की, तेरी जोगन मैं बन जाऊं महल रहे या घास की कुटिया, इसकी फिक्र कहा मोह जोगन को बस तेरे धुन में खो जाऊं, वस्त्र वदन के लोग निहारे, मैं तेरी खुशबु की चादर ओढ़ें निसदिन तेरे ही गुण गाउ निर्मोही तेरे ही गुण गाउँ ©Arani"

 ना धर्मी राम ना ही रंगराशिया शयाम मोहे भावे, 
न चाहूँ  मै  अग्नि परीक्षा सीता सी, न राधा सी  विरह मैं चाहूँ 
इतनी विनती है मोहि की, तेरी जोगन  मैं  बन जाऊं 
महल रहे या घास की कुटिया, इसकी फिक्र कहा मोह जोगन को 
बस तेरे  धुन में खो जाऊं,
 वस्त्र वदन के लोग निहारे, मैं तेरी खुशबु  की  चादर ओढ़ें
  निसदिन तेरे ही गुण गाउ निर्मोही तेरे ही गुण गाउँ

©Arani

ना धर्मी राम ना ही रंगराशिया शयाम मोहे भावे, न चाहूँ मै अग्नि परीक्षा सीता सी, न राधा सी विरह मैं चाहूँ इतनी विनती है मोहि की, तेरी जोगन मैं बन जाऊं महल रहे या घास की कुटिया, इसकी फिक्र कहा मोह जोगन को बस तेरे धुन में खो जाऊं, वस्त्र वदन के लोग निहारे, मैं तेरी खुशबु की चादर ओढ़ें निसदिन तेरे ही गुण गाउ निर्मोही तेरे ही गुण गाउँ ©Arani

jahir-e-khat

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