White व्यंग : धरती दुखी है दुखी है धरती आज। अंध | हिंदी कोट्स

"White व्यंग : धरती दुखी है दुखी है धरती आज। अंध विकाश कामों से। मानवता के नामो से ।। दानवता के कामों से । मृदा संरक्षण के नामो से।। किसान हमारे वृक्ष लगाते । बाकी सब तो डीपी लगाते हैं।। दुखी है धरती आज मानवता के। अंध विकाशी कामो से।। धरती की सहनशीलता मार दिया । इसका हरित चीर भी उतार लिया ।। तथा कथित विकास की दौड़ से । कम्पित है धरती इसमें लगी होड़ से ।। गहने इसके टूट रहे हैं । मानव लोभी लूट रहे हैं।। दूषित नदी का नीर किया है । ताप से गगन गंभीर किया है ।। बर्बरता पूर्ण भोग विलास से । दुखी है धरती मानव के लिबास से ©Hari Verma"

 White व्यंग : धरती दुखी है
 दुखी है धरती आज।
  अंध विकाश कामों से।
 मानवता के नामो से ।।
 दानवता के कामों से ।
मृदा संरक्षण के नामो से।। 
किसान हमारे वृक्ष लगाते ।
बाकी सब तो डीपी लगाते हैं।।
 दुखी है धरती आज मानवता के।
 अंध विकाशी कामो से।।
धरती की सहनशीलता मार दिया ।
इसका हरित चीर भी उतार लिया ।।
तथा कथित विकास की दौड़ से ।
कम्पित है धरती इसमें लगी होड़ से ।। 
गहने इसके टूट रहे हैं ।
मानव लोभी लूट रहे हैं।।
 दूषित नदी का नीर किया है ।
ताप से गगन गंभीर किया है ।।
बर्बरता पूर्ण भोग विलास से ।
दुखी है धरती मानव के लिबास से

©Hari Verma

White व्यंग : धरती दुखी है दुखी है धरती आज। अंध विकाश कामों से। मानवता के नामो से ।। दानवता के कामों से । मृदा संरक्षण के नामो से।। किसान हमारे वृक्ष लगाते । बाकी सब तो डीपी लगाते हैं।। दुखी है धरती आज मानवता के। अंध विकाशी कामो से।। धरती की सहनशीलता मार दिया । इसका हरित चीर भी उतार लिया ।। तथा कथित विकास की दौड़ से । कम्पित है धरती इसमें लगी होड़ से ।। गहने इसके टूट रहे हैं । मानव लोभी लूट रहे हैं।। दूषित नदी का नीर किया है । ताप से गगन गंभीर किया है ।। बर्बरता पूर्ण भोग विलास से । दुखी है धरती मानव के लिबास से ©Hari Verma

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