कीमत
फरियादी न होता कोई, कभी चाहतों के दरबार में।
जो बिकती होती मोहब्बत दुनिया के इस बाजार में।
जी भर के खरीद लेता हर कोई किसी की मोहब्बत,
बाकी न रहता, फिर कोई भी इश्क से इस संसार में।
एक दिल जो पसंद न आता, तो दूसरा ले आते हम,
खेलने के लिए साहिब, खिलौने ना होते दरकार में।
जज्बातों के भाव लगाते अरमानों की कीमत होती,
लेते मजा हम भी, फिर इश्क के इस व्यापार में।
सब कुछ नीलाम हो जाता है, यहां सौदे बाजी में,
दर्द भी मुफ्त नहीं मिलता, रिश्तों के इस बाज़ार में।
पल पल बढ़ती जाती है, कीमत बेतहाशा इश्क की,
तेरी दौलत कम न पड़ जाए, प्यार के कारोबार में।
है अनमोल बड़ा कतरा कतरा इश्क की खुशबू का,
महकेगी उसकी बगिया, जो किस्मत वाला है संसार में।
है कीमत कुछ कम नहीं, इस गरीब की भी यहां पर
अहमियत हम भी रखते हैं अपनी, इस छोटे से किरदार में।
सुशी सक्सेना
©Anjali
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