"चाà¤à¤¦ का कसूर चाँद का कसूर पूर्णिमा की वो चांदनी वाली रात।।
चांद की रौशन में खिलती वो गुलाब।।
मोहब्बत की रंग में।।
चढ़ती वो शबाब।।
आपसे बेपनाह मोहब्बत हो गई है जनाब।।"
चाà¤à¤¦ का कसूर चाँद का कसूर पूर्णिमा की वो चांदनी वाली रात।।
चांद की रौशन में खिलती वो गुलाब।।
मोहब्बत की रंग में।।
चढ़ती वो शबाब।।
आपसे बेपनाह मोहब्बत हो गई है जनाब।।