घसेरी हाथ्याें मा दथुडी धरी कांधी मा कंडी रखी क

"घसेरी हाथ्याें मा दथुडी धरी कांधी मा कंडी रखी कभी ये धार त कभी ते धार कभी ये डाली मा त कभी उूंचा उूचां बिट्टा मा हर्यु घास खुजाेणी च या हाैर क्वी नीन या मेरा गौं की घस्यारी च | घाम चमकुडू मुंड मा अरे घाम चमकुडू मूंड मा गलु वेकु तीसाणु च अभी आधा कंडी घास की वे अर नाैनु घर मु भुकाडु च छि भई याें रूढ्याें का दिनाें मा य्य बाेटलू घासाें भी नी दिखेडू च खाली कंडुं कनके लिजालु घर शरीर वेकु झुराणु च | दूर बिट्टा मा घास दिख्यायी जब नजर वेन चाै तरफी लगायी घास देखी पराण वेकु ज़रा उन्द आयी ते ऊँचा बिट्टा मा स्या चढन लग्यायी साेची ना तीन एक बार भी खुट्टी रडी जाली त क्या कली ते घास काटी भी जनी तनी करी सा बिट्टा मा चढी ग्यायी कंडी भरीक घर पेटन लगी ग्यायी | भूख तीस सब बिसरीक खुटी सरासर बढाेन लेगी घर झटपट पाैछी जाेन मन मा स्या साेचड लेगी साेचडा हाेला यू तुम भी कु हाेली या इन भी अरे त बतें दयूं या हाैर क्वी नीन हाँ या हाैर क्वी नीन या मेरा उत्तराखंड की घसेरी च | -रिंकी काला"

 घसेरी 

हाथ्याें मा दथुडी धरी 
कांधी मा कंडी रखी
कभी ये धार 
त कभी ते धार 
कभी ये डाली मा 
त कभी उूंचा उूचां बिट्टा मा
हर्यु घास खुजाेणी च 
या हाैर क्वी नीन 
या मेरा गौं की घस्यारी च |

घाम चमकुडू मुंड मा
अरे घाम चमकुडू मूंड मा
गलु वेकु तीसाणु च
अभी आधा कंडी घास की वे
अर नाैनु घर मु भुकाडु च 
छि भई याें रूढ्याें का दिनाें मा
य्य बाेटलू घासाें भी नी दिखेडू च 
खाली कंडुं कनके लिजालु घर 
शरीर वेकु झुराणु च |

दूर बिट्टा मा घास दिख्यायी
जब नजर वेन चाै तरफी लगायी
घास देखी पराण वेकु ज़रा उन्द आयी
ते ऊँचा बिट्टा मा स्या चढन लग्यायी
साेची ना तीन एक बार भी
खुट्टी रडी जाली त 
क्या कली ते घास काटी भी
जनी तनी करी सा बिट्टा मा चढी ग्यायी
कंडी भरीक घर पेटन लगी ग्यायी |

भूख तीस सब बिसरीक  
खुटी सरासर बढाेन लेगी
घर झटपट पाैछी जाेन 
मन मा स्या साेचड लेगी
साेचडा हाेला यू तुम भी 
कु हाेली या इन भी
अरे त बतें दयूं या हाैर क्वी नीन
हाँ या हाैर क्वी नीन
या मेरा उत्तराखंड की घसेरी च |


                             -रिंकी काला

घसेरी हाथ्याें मा दथुडी धरी कांधी मा कंडी रखी कभी ये धार त कभी ते धार कभी ये डाली मा त कभी उूंचा उूचां बिट्टा मा हर्यु घास खुजाेणी च या हाैर क्वी नीन या मेरा गौं की घस्यारी च | घाम चमकुडू मुंड मा अरे घाम चमकुडू मूंड मा गलु वेकु तीसाणु च अभी आधा कंडी घास की वे अर नाैनु घर मु भुकाडु च छि भई याें रूढ्याें का दिनाें मा य्य बाेटलू घासाें भी नी दिखेडू च खाली कंडुं कनके लिजालु घर शरीर वेकु झुराणु च | दूर बिट्टा मा घास दिख्यायी जब नजर वेन चाै तरफी लगायी घास देखी पराण वेकु ज़रा उन्द आयी ते ऊँचा बिट्टा मा स्या चढन लग्यायी साेची ना तीन एक बार भी खुट्टी रडी जाली त क्या कली ते घास काटी भी जनी तनी करी सा बिट्टा मा चढी ग्यायी कंडी भरीक घर पेटन लगी ग्यायी | भूख तीस सब बिसरीक खुटी सरासर बढाेन लेगी घर झटपट पाैछी जाेन मन मा स्या साेचड लेगी साेचडा हाेला यू तुम भी कु हाेली या इन भी अरे त बतें दयूं या हाैर क्वी नीन हाँ या हाैर क्वी नीन या मेरा उत्तराखंड की घसेरी च | -रिंकी काला

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