हम चैन से सो सके, इसलिए ही वे सो गए; देश आजाद हो स | हिंदी कविता

"हम चैन से सो सके, इसलिए ही वे सो गए; देश आजाद हो सके, इसलिए वो शहीद हो गए। सैनिकों के काव्यों में आप वीर रस से उत्साहित हो जाते हैं लेकिन उस वीर रस का आधार प्रेम है। जब सैनिक,मां,पिता,पत्नी, बच्चे दोस्त; मोह को त्यागकर प्रेम को अपनाते हैं तभी एक इंसान सैनिक बनता है। मोह त्यागकर प्रेम पथ पर चलना साधारण बात नहीं। इसलिए ही हम वीर सैनिकों के साथ उनके परिवार जनों को भी शीश झुकाते हैं। चाहे न जाना मन्दिर, न जाना मस्जिद, चाहे न जाना गुरुद्वारा, न जाना गिरिजाघर, चाहे न जाना काबा, न जाना चारोंधाम, गर जाना किसी सैनिक के घर...|2| तो झुककर करना एक प्रणाम। ©SURENDRA SINGH"

 हम चैन से सो सके, इसलिए ही वे सो गए;
देश आजाद हो सके, इसलिए वो शहीद हो गए।

सैनिकों के काव्यों में आप वीर रस से उत्साहित हो जाते हैं लेकिन उस वीर रस का आधार प्रेम है। 
जब सैनिक,मां,पिता,पत्नी, बच्चे दोस्त; मोह को त्यागकर प्रेम को अपनाते हैं तभी एक इंसान सैनिक बनता है। मोह त्यागकर प्रेम पथ पर चलना साधारण बात नहीं। इसलिए ही हम वीर सैनिकों के साथ उनके परिवार जनों को भी शीश झुकाते हैं।

चाहे न जाना मन्दिर, न जाना मस्जिद,
चाहे न जाना गुरुद्वारा, न जाना गिरिजाघर,
चाहे न जाना काबा, न जाना चारोंधाम,
गर जाना किसी सैनिक के घर...|2|
तो झुककर करना एक प्रणाम।

©SURENDRA SINGH

हम चैन से सो सके, इसलिए ही वे सो गए; देश आजाद हो सके, इसलिए वो शहीद हो गए। सैनिकों के काव्यों में आप वीर रस से उत्साहित हो जाते हैं लेकिन उस वीर रस का आधार प्रेम है। जब सैनिक,मां,पिता,पत्नी, बच्चे दोस्त; मोह को त्यागकर प्रेम को अपनाते हैं तभी एक इंसान सैनिक बनता है। मोह त्यागकर प्रेम पथ पर चलना साधारण बात नहीं। इसलिए ही हम वीर सैनिकों के साथ उनके परिवार जनों को भी शीश झुकाते हैं। चाहे न जाना मन्दिर, न जाना मस्जिद, चाहे न जाना गुरुद्वारा, न जाना गिरिजाघर, चाहे न जाना काबा, न जाना चारोंधाम, गर जाना किसी सैनिक के घर...|2| तो झुककर करना एक प्रणाम। ©SURENDRA SINGH

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