जब भी मिलने की बात कहते हो क्षितिज
वो कभी कल कभी परसो के वादे करती है
व्यस्त है वो जरूरी काम में फंसी है कहते हो
मग़र आहट मिलने के इरादे नही रखती है
भरोसा करो इबादत में खुदा की ठीक है
मग़र याद रहे आहट शैतानियों की आदतें रखती है
आँशुओ में सच का आईना दिखाया करती है
मग़र आँखे मिलाकर झूठ पर भी एतबार कराती है
आलम ये है कि अब हम उसे महसूस करते है
मग़र याद आती है मग़र रुलाया नही करती है
अभिषेक क्षितिज
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©अभिषेक क्षितिज