White मुखौटे देखे लाखों मैंने
चेहरा दिखना बाकी है
हर डाल पर हैं कर्कश कौवे
कोयल का दिखना बाकी है
है व्याप्त दर्प का अहंकार
आलोक शील का बाकी है
है डगर अनैतिक भीड़ भरी
सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है
चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर
वाणी यथार्थ की बाकी है
सही को कहे सही, गलत को गलत
दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है
थोड़ी जो कलम ये चलाई है
इस पर ही भृकुटी तन गई
कुछ अफसाने अभी लिखे हैं
काफी कुछ लिखना बाकी है
©गजेंद्र 'गौरव'
#good_night #rebel