कोई तो समझा दो मुझे,
जिंदगी का खेल,
कैसे हो जाते हैं,
चलते-चलते पास और फेल।
राहें सीधी लगती हैं,
पर मोड़ अनगिनत हैं,
हर कदम पर इम्तिहान,
हर मोड़ पे सवालात हैं।
कभी मिलती है मंजिल,
कभी राहें भी खो जाती हैं,
कभी हंसी के पल आते हैं,
कभी आँसू भी छलक जाते हैं।
सपनों की उड़ान है ये,
हकीकत का एक जाल,
कभी फूलों की बगिया,
कभी काँटों का सवाल।
जो समझे खेल जिंदगी का,
वही है असली खिलाडी,
हर हार में ढूंढ लेता है,
वो जीत की तैयारी।
कोई तो समझा दो मुझे,
जिंदगी का ये फसाना,
कैसे हो जाते हैं,
चलते-चलते पास और फेल।
©Balwant Mehta
#Child