White तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है और तू मेर | हिंदी Shayari

"White तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है और तू मेरे गांव को गँवार कहता है ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है थक गया है हर शख़्स काम करते करते तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा तू उन माँ बाप को अब भार कहता है वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे है तू इस नये दौर को संस्कार कहता है -ख्याली_जोशी ©HUMANITY INSIDE"

 White तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है

ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है

थक गया है हर शख़्स काम करते करते
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है

वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है

बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे है
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है

-ख्याली_जोशी

©HUMANITY INSIDE

White तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है और तू मेरे गांव को गँवार कहता है ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है थक गया है हर शख़्स काम करते करते तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा तू उन माँ बाप को अब भार कहता है वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे है तू इस नये दौर को संस्कार कहता है -ख्याली_जोशी ©HUMANITY INSIDE

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