रोज़ सवेरे उठता हूॅं मैं लेकर नज़्म सारीकों का, पत | हिंदी शायरी

"रोज़ सवेरे उठता हूॅं मैं लेकर नज़्म सारीकों का, पता नहीं ख़त आ जाए कब निष्ठुर-क्रूर निमिषों का। क्षण देखा इन बगिया में कि साख-फूल हि ज्यादा हैं झपक उठाया पलकें तो ये बगिया हि अब आधा है। ..... . ©Piyush"

 रोज़ सवेरे उठता हूॅं मैं लेकर नज़्म सारीकों का,
पता नहीं ख़त आ जाए कब निष्ठुर-क्रूर निमिषों का।


क्षण देखा इन बगिया में कि साख-फूल हि ज्यादा हैं
झपक उठाया पलकें तो ये बगिया हि अब आधा है।
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©Piyush

रोज़ सवेरे उठता हूॅं मैं लेकर नज़्म सारीकों का, पता नहीं ख़त आ जाए कब निष्ठुर-क्रूर निमिषों का। क्षण देखा इन बगिया में कि साख-फूल हि ज्यादा हैं झपक उठाया पलकें तो ये बगिया हि अब आधा है। ..... . ©Piyush

#RaysOfHope

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