"इक दौर मिरा भी आएगा, ये झूठ यूंही कह दूंगा..!
इतना तो सच ही है इक दिन मेरी भी लहर आयेगी..!!
इक सब्र के चाकू से रातें हज़ार काटूंगा....!
फल सब्र का यही होगा मीठी सी सहर आयेगी...!!
कुछ देर पांव जला पाया तो शामें हसीन देखूंगा...!
कड़ी धूप से भी क्या डरना पहर दो पहर आयेगी...!!
कागज़ की सख्त जमीं को मैं हर्फ हर्फ खोदूंगा..!
चश्मा गजलों का उबलेगा, लफ्ज़ों में गहर आयेगी..!!"