अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नह | हिंदी कविता

"अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नहीं डूबा, ज़रा सी शाम होने तो दो थोड़ी सी गेरुआ छटा, आसमां में बेखरेने तो दो थोड़ी सी शीतलता तो, मौसम में बिखरने तो दो रात को आने के इंतजार में, शब्र का बांध टूटने तो दो मन में एक सुकुन का एहसास, हिलोरें उठने तो दो थोड़ी सबके दिल में मानवता, को बचाने को लेकर इंसानियत की अलख जगाने, को लेकर थोड़ी चिंगारी भरकाने तो दो"

 अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नहीं डूबा, 
ज़रा सी शाम होने तो दो
थोड़ी सी गेरुआ छटा, 
आसमां में बेखरेने तो दो
थोड़ी सी शीतलता तो, 
मौसम में बिखरने तो दो
रात को आने के इंतजार में, 
शब्र का बांध टूटने तो दो
मन में एक सुकुन का एहसास,
 हिलोरें उठने तो दो
थोड़ी सबके दिल में मानवता,
को बचाने को लेकर
इंसानियत की अलख जगाने,
को लेकर थोड़ी चिंगारी
भरकाने तो दो

अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नहीं डूबा, ज़रा सी शाम होने तो दो थोड़ी सी गेरुआ छटा, आसमां में बेखरेने तो दो थोड़ी सी शीतलता तो, मौसम में बिखरने तो दो रात को आने के इंतजार में, शब्र का बांध टूटने तो दो मन में एक सुकुन का एहसास, हिलोरें उठने तो दो थोड़ी सबके दिल में मानवता, को बचाने को लेकर इंसानियत की अलख जगाने, को लेकर थोड़ी चिंगारी भरकाने तो दो

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