गांव मेरे ...(चेतन वर्मा)
याद आता है तू गांव मेरे
अब तेरी ही तलाश में निकलूंगा मैं
सोचता हूं
थोड़े दिन और रह लूं शहर में
नौकरी लग कर
तेरी और ही लौटूंगा मैं...
जी भर ही गया
अब मेरा शहर से
रास्ते-रास्ते घर को लौटूंगा मैं
थोड़ा वक्त लगेगा सही भी है पर
हर घाट का पानी पीकर
अपने गांव लौटूंगा मैं...
अब तो निगाह भी
तरसी है मेरी पर
कैसे कह दूं सभी से कि ना लगे मन
अब तो गांव के संग रहूंगा मैं
याद आता है तू गांव मेरे
अब तेरी ही तलाश में निकलूंगा मैं...
©Chetan Verma
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