My dear poem समन्दर नहीं कुछ बूंद मांगता
सारे दिन का कुछ सुकून मांगता हूं
कभी तो रहम ओ कर्म दिखाया कर
मैं कोनसा घड़ी-घड़ी मांगता हूं
और , हां ! मैं क्या कह रहा था
तुम समझी नहीं क्या,
हजारों खड़ी हैं भीड़ में
मैं सिर्फ तुम्हे मांगता हूं ।
©Navash2411
#नवश