My dear poem writer binda seehra
जिनके ज़मीर ज़िन्दा वो सच्च को सच्च बताते
बुज़दिल होते वो जो झूठ का दिया पीते खाते
मरके भी नहीं छूटते जो होते सच्चे रिश्ते नाते
चैन से जीते वो ही जो दूसरों को नहीं सताते
असल पत्रकार वो जो हकीकत को दिखाते
सूरमे होते वो seehra जो ज़माना बदल जाते
मक्कार कभी ना दोस्तो क्रान्ति के हक में आते
अच्छो को सदैव अच्छे बुरों को बुरे ही भाते
जैसा जैसा हम सोचते वैसे ही बनते जाते
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