gazal... by chetan verma
यह मौसम इतना अच्छा होता क्यों है
कोई नहीं पास तो रोता क्यों है |
रुको जरा ठहरो जुल्फों के साए में
अंधेरा कितना ही हो हटता क्यों है |
बिछड़ कर मुझसे उसका घर बस भी गया होगा
पर नया घर अच्छा लगता क्यों है |
यूं ना फसाओ हमें शरबती बातों में
आंखों का छलका आंसू टपकता क्यों है |
सब समझ आ गया उसे मेरा महफिल-ए-राग भी
शिकायत यह है कि बिखर कर भी वह हंसता क्यों है |
©Chetan Verma
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