जब मैंने माँगा सुकूँ खुश दिखने को
तो माँगा कलम ने दर्द लिखने को
अब फर्क नहीं पड़ता ख़ुशी हो ग़म
वास्ते कलम मजबूर हूँ मैं झुकने को
वो नज़र करें तो महक जायें हर्फ़ मेरे
कहीं और कहाँ राजी मर मिटने को
गुथ लिया ख़ुद हार-ए-ग़ज़ल हो गये
अब तैयार हैं सरे बाजार बिकने को
लिफाफा खोला तो पैगाम लिखा था
हम हाजिर तेरे इशारों पे चलने को
©अज्ञात
#तमन्ना-हर्फ़