जन-जन की खातिर छोड़ महल प्रभु हुए वनवासी..
पर आज के नेता महलों में,
रास्तों पर छोड़े अपने जनवासी ।
सोच यही शायद अब जाग गए अयोध्यावासी।।
अपनों की खातिर जिसने महलों तक का त्याग किया..
उन्हें महलों में लाने को घर जन - जन का ही क्यों तोड़ दिया ?
तरक्की अयोध्या की बस आंखों की....
दिल में जन के टीस है।
छत हटा करके जन-जन की प्रभु राम को अगर बसाओगे..
उन्ही राम जी के नाम पर फिर तुम वोट कहां से पाओगे।
राजनीति और धर्म दो चीज अलग
तुमने ही इसे मिलाया है।
पीड़ा कष्ट देकर के ही अयोध्यावासियों को जगाया है।।
©अभी_की_अभिव्यक्ति!