ख़फा खफ़ा फिरते हो हाल अपना बताते क्यों नही।
क्या ग़म है तुम्हें, हक़ मुझ पर अब जमाते क्यों नही।
क्या बुरा लगा क्या भला लगा माज़रा क्या है
कुछ अल्फ़ाज़ ज़ज़्बातों क़े दिखाते क्यों नही ।
दूर दूर रहते हो, पास होकर भी दूर हो
कबसे रूठी हूँ मैं तुमसे तुम मुझे मानते क्यों नही ।
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