मुर्शीद जिंदगी के हिस्से में कभी कोई परेशान ना हो | हिंदी शायरी

"मुर्शीद जिंदगी के हिस्से में कभी कोई परेशान ना हो ​इससे अच्छा कि छीन ले जिंदगी तो कोई हैरान ना हो ​​तजुर्बे है सो दुआ करता हूं परवरदिगार से ​इश्क हो किसी को तो गरीबी के दौरान ना हो ​ ​सिसकियां पैदा हो किसी की और दफन हो जाए ​ और किसी भी मस्जिद में इसका ऐलान ना हो ​ ​किसी से दिल लगाने से पहले क्या राय है तेरी ​अपनाने से पहले छोड़ दें तो ज्यादा नुकसान ना हो ​ ​इबादत अब तक फजूल कि मैंने तेरी गालिब ​अब तो ये है कि जहां भगवान हो वहां इंसान ना हो ​शुक्रिया के मेरे दर्द को कलाकारी कहा गया ​मैं सोचता भी यही था कि मेरी पहचान ना हो..."

 मुर्शीद जिंदगी के हिस्से में कभी कोई परेशान ना हो
​इससे अच्छा कि छीन ले जिंदगी तो कोई हैरान ना हो

​​तजुर्बे है सो दुआ करता हूं  परवरदिगार  से
​इश्क हो किसी को तो गरीबी के  दौरान ना हो
​
​सिसकियां पैदा हो किसी की और दफन हो जाए ​ 
और  किसी  भी मस्जिद में इसका ऐलान ना हो
​
​किसी से दिल लगाने से पहले क्या राय है तेरी
​अपनाने से पहले छोड़ दें तो ज्यादा नुकसान ना हो
​
​इबादत अब तक फजूल कि मैंने तेरी गालिब
​अब तो ये है कि जहां भगवान  हो वहां इंसान ना हो

​शुक्रिया के मेरे दर्द को कलाकारी कहा गया
​मैं सोचता भी यही था कि मेरी पहचान ना हो...

मुर्शीद जिंदगी के हिस्से में कभी कोई परेशान ना हो ​इससे अच्छा कि छीन ले जिंदगी तो कोई हैरान ना हो ​​तजुर्बे है सो दुआ करता हूं परवरदिगार से ​इश्क हो किसी को तो गरीबी के दौरान ना हो ​ ​सिसकियां पैदा हो किसी की और दफन हो जाए ​ और किसी भी मस्जिद में इसका ऐलान ना हो ​ ​किसी से दिल लगाने से पहले क्या राय है तेरी ​अपनाने से पहले छोड़ दें तो ज्यादा नुकसान ना हो ​ ​इबादत अब तक फजूल कि मैंने तेरी गालिब ​अब तो ये है कि जहां भगवान हो वहां इंसान ना हो ​शुक्रिया के मेरे दर्द को कलाकारी कहा गया ​मैं सोचता भी यही था कि मेरी पहचान ना हो...

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