अक्सर हमें परिस्थितियों के बहाव में ढलना चाहिए क् | हिंदी કવિતા

"अक्सर हमें परिस्थितियों के बहाव में ढलना चाहिए क्योकि ज्यादा अपेक्षाए हमे हरा देती है। हम जैसा सोचते है वैसे हर कोई नई होता इसीलिए कभी किसीसे कुछ पाने की चाह में नही रखना चाहिए। वैसे ही वो संबंध ही क्या जिसमे कुछ खोया न हो मनुष्य सब कुछ पाने की चाह में ये भूल जाता है की सबके परे प्रेम ही होता है जो एकदूसरे को सहज कर रखता है। "बोली के दो बोल , जो समज ना पाए कोई तो फिर क्या लेना है उससे कोई मोल मन में बसाले अपने बोल" ©sachin goswami"

 अक्सर हमें परिस्थितियों के बहाव में ढलना चाहिए 
क्योकि ज्यादा अपेक्षाए हमे हरा देती है।
हम जैसा सोचते है वैसे हर कोई नई होता 
इसीलिए कभी किसीसे कुछ पाने की चाह में नही रखना चाहिए।
वैसे ही वो संबंध ही क्या जिसमे कुछ खोया न हो
मनुष्य सब कुछ पाने की चाह में ये भूल जाता है की
सबके परे प्रेम ही होता है जो एकदूसरे को सहज कर रखता है।

"बोली के दो बोल , जो समज ना पाए कोई
तो फिर क्या लेना है उससे कोई मोल
मन में बसाले अपने बोल"

©sachin goswami

अक्सर हमें परिस्थितियों के बहाव में ढलना चाहिए क्योकि ज्यादा अपेक्षाए हमे हरा देती है। हम जैसा सोचते है वैसे हर कोई नई होता इसीलिए कभी किसीसे कुछ पाने की चाह में नही रखना चाहिए। वैसे ही वो संबंध ही क्या जिसमे कुछ खोया न हो मनुष्य सब कुछ पाने की चाह में ये भूल जाता है की सबके परे प्रेम ही होता है जो एकदूसरे को सहज कर रखता है। "बोली के दो बोल , जो समज ना पाए कोई तो फिर क्या लेना है उससे कोई मोल मन में बसाले अपने बोल" ©sachin goswami

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