सौ मन घृत तुम भले लगा दो टेढ़े हो जाते हैं , सड़

"सौ मन घृत तुम भले लगा दो टेढ़े हो जाते हैं , सड़ी लाश को कंधे पर रख बदबू फैलाते हैं , कुछ पप्पु , टीपू सा होते हैं मतिमंद भिखारी , कितने जूते मारो लेकिन नहीं सुधर पाते हैं ! अशान्त (पटना) ©Ramshlok Sharma Ashant"

 सौ मन घृत तुम भले लगा दो
टेढ़े  हो  जाते   हैं ,
सड़ी लाश को  कंधे  पर रख
बदबू   फैलाते   हैं ,
कुछ   पप्पु , टीपू   सा  होते
हैं मतिमंद भिखारी ,
कितने   जूते   मारो  लेकिन 
नहीं सुधर  पाते हैं !

अशान्त (पटना)

©Ramshlok Sharma Ashant

सौ मन घृत तुम भले लगा दो टेढ़े हो जाते हैं , सड़ी लाश को कंधे पर रख बदबू फैलाते हैं , कुछ पप्पु , टीपू सा होते हैं मतिमंद भिखारी , कितने जूते मारो लेकिन नहीं सुधर पाते हैं ! अशान्त (पटना) ©Ramshlok Sharma Ashant

कविता

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