खुद में उलझे हैं हम ऐसे, रिश्तों में घटा-जोड बहुत | हिंदी कविता

"खुद में उलझे हैं हम ऐसे, रिश्तों में घटा-जोड बहुत है। दिखते हैं लोग सामने अच्छे, पीछे गठजोड़ बहुत है। मिलता हूं मैं, सबसे बेमतलब, सब में मतलब की हौड बहुत है। मन विचलित है खुद में, बाहर और अंदर शोर बहुत है। ढूंढता हूं सुकून जिंदगी में, मगर हर जगह भागदौड़ बहुत है।    ---------आनन्द ©आनन्द कुमार"

 खुद में उलझे हैं हम ऐसे,
रिश्तों में घटा-जोड बहुत है।

दिखते हैं लोग सामने अच्छे,
पीछे गठजोड़ बहुत है।

मिलता हूं मैं, सबसे बेमतलब,
सब में मतलब की हौड बहुत है।

मन विचलित है खुद में,
बाहर और अंदर शोर बहुत है।

ढूंढता हूं सुकून जिंदगी में,
मगर हर जगह भागदौड़ बहुत है।
                              ---------आनन्द

©आनन्द कुमार

खुद में उलझे हैं हम ऐसे, रिश्तों में घटा-जोड बहुत है। दिखते हैं लोग सामने अच्छे, पीछे गठजोड़ बहुत है। मिलता हूं मैं, सबसे बेमतलब, सब में मतलब की हौड बहुत है। मन विचलित है खुद में, बाहर और अंदर शोर बहुत है। ढूंढता हूं सुकून जिंदगी में, मगर हर जगह भागदौड़ बहुत है।    ---------आनन्द ©आनन्द कुमार

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