रातो का अंधेरा भी क्या घन्घोर अंधेरा है
तुम तो दिन के उजाले मे भी नज़र नही आते मुझको
नींदों का क्या है वो तो आती ही नही है
तुम भी अब ख्वाबों मे नज़र नही आते मुझको
बाज़ारो मे रौनक ही रौनक है अब तो
ये रौनक भी क्या रौनक है अगर तुम नज़र नही आते मुझको
मे बदला हुवा हू तो इसमे खता मेरी क्या है
तुम भी तो अब पहले जैसे नज़र नही आते मुझको
ये दुनिया है की मुझको समझाने पे तुली है
एक तुम हो की तुम्हारे कोई पैगाम नज़र नही आते मुझको
©नासिर काज़मी
#wait