एक मित्र से हुई बड़े दिनों बाद मुलाकात हमारा हुलिय | हिंदी कविता

"एक मित्र से हुई बड़े दिनों बाद मुलाकात हमारा हुलिया देख शुरू हो गए उनके सवालात ये क्या ढाढ़ी क्यों बढ़ाई, बाल क्यों नही कटवाए बोला उन्होंने कोई मन्नत ठानी है क्या ,तो बतलाए हमने कहा, हमने कोई भी मन्नत नही ठानी है ये जो आप देख रहे है सब बेरोजगारी की निशानी है क्या कहा आप बेरोजगार है ? अरे आप तो चौँक रहे है ऐसे , मानो हम आपके गुन्हेगार है उन्होंने कहा, अब आगे क्या सोचा है हमने कहा, 5 रुपये का धनिया और फ्री मे एक टुकडा अदरक सोचा है वो बोले, महोदय आपकी सोच को नमस्कार लेकिन क्या आपकी प्रियतमा को है स्वीकार अरे! उनको क्या ऐतराज हो सकती है खर्चे उठाने के लिए उनके पास है बहुत से यार वो बोले, महोदय मेरा सीधा सवाल, कब कमाओगे? हमने कहा, हमें अपने घर कब बुलाओगे? क्या मतलब? महमान बनाकर घर ले जाओ, डिनर पर सारी बात पाओ सावन का महीना है ये महोदय चिकन नही शाही पनीर खिलाओ –Vikas Gupta ©Vikas Gupta"

 एक मित्र से हुई बड़े दिनों बाद मुलाकात
हमारा हुलिया देख शुरू हो गए उनके सवालात

ये क्या ढाढ़ी क्यों बढ़ाई, बाल क्यों नही कटवाए
बोला उन्होंने कोई मन्नत ठानी है क्या ,तो बतलाए

हमने कहा, हमने कोई भी मन्नत नही ठानी है
ये जो आप देख रहे है सब बेरोजगारी की निशानी है

क्या कहा आप बेरोजगार है ? 

अरे आप तो चौँक रहे है ऐसे ,
 मानो हम आपके गुन्हेगार है

उन्होंने कहा, अब आगे क्या सोचा है
 हमने कहा, 5 रुपये का धनिया
और फ्री मे एक टुकडा अदरक सोचा है

वो बोले, महोदय आपकी सोच को नमस्कार
लेकिन क्या आपकी प्रियतमा को है स्वीकार

अरे! उनको क्या ऐतराज हो सकती है
खर्चे उठाने के लिए उनके पास है बहुत से यार

वो बोले, महोदय मेरा सीधा सवाल, कब कमाओगे? 
हमने कहा, हमें अपने घर कब बुलाओगे? 
क्या मतलब? 
महमान बनाकर घर ले जाओ, डिनर पर सारी बात पाओ
सावन का महीना है ये महोदय चिकन नही शाही पनीर खिलाओ

–Vikas Gupta

©Vikas Gupta

एक मित्र से हुई बड़े दिनों बाद मुलाकात हमारा हुलिया देख शुरू हो गए उनके सवालात ये क्या ढाढ़ी क्यों बढ़ाई, बाल क्यों नही कटवाए बोला उन्होंने कोई मन्नत ठानी है क्या ,तो बतलाए हमने कहा, हमने कोई भी मन्नत नही ठानी है ये जो आप देख रहे है सब बेरोजगारी की निशानी है क्या कहा आप बेरोजगार है ? अरे आप तो चौँक रहे है ऐसे , मानो हम आपके गुन्हेगार है उन्होंने कहा, अब आगे क्या सोचा है हमने कहा, 5 रुपये का धनिया और फ्री मे एक टुकडा अदरक सोचा है वो बोले, महोदय आपकी सोच को नमस्कार लेकिन क्या आपकी प्रियतमा को है स्वीकार अरे! उनको क्या ऐतराज हो सकती है खर्चे उठाने के लिए उनके पास है बहुत से यार वो बोले, महोदय मेरा सीधा सवाल, कब कमाओगे? हमने कहा, हमें अपने घर कब बुलाओगे? क्या मतलब? महमान बनाकर घर ले जाओ, डिनर पर सारी बात पाओ सावन का महीना है ये महोदय चिकन नही शाही पनीर खिलाओ –Vikas Gupta ©Vikas Gupta

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