ये राजनीति है जो आपस हम सबको लड़वाती हैं वरना सोने | हिंदी शायरी

"ये राजनीति है जो आपस हम सबको लड़वाती हैं वरना सोने की लंका में आग कहां जलती हैं ये ऐसे कायर जो दुश्मन से भी डरते है अपने ही गद्दार हैं जिनको सब नेता कहते हैं कूर्सी खातिर कई मासूमों को बलि चढ़ाते हैं दुश्मन से दोगुना है देश हमारा फिर भी हम ही मरते हैं अरे हाथ बांध रखे है दिल्ली ने वरना शेर कहां गीदड़ से डरते हैं एक मौका दो कि ये भूखे शेर भी दहाड़ दें , और अतंकवाद को पृथ्वी के नक्शे से उखाड़ फेंक दे V.S.diwakar ©Virendra Singh Diwakar"

 ये राजनीति है जो आपस हम सबको लड़वाती हैं
वरना सोने की लंका में आग कहां जलती हैं
ये ऐसे कायर जो दुश्मन से भी डरते है
अपने ही गद्दार हैं जिनको सब नेता कहते हैं
कूर्सी खातिर कई मासूमों को बलि चढ़ाते हैं
दुश्मन से दोगुना है देश हमारा फिर भी हम ही मरते हैं
अरे हाथ बांध रखे है दिल्ली ने
वरना शेर कहां गीदड़ से डरते हैं
एक मौका दो कि ये भूखे शेर भी दहाड़ दें ,
और अतंकवाद को पृथ्वी के नक्शे से उखाड़ फेंक दे 
 V.S.diwakar

©Virendra Singh Diwakar

ये राजनीति है जो आपस हम सबको लड़वाती हैं वरना सोने की लंका में आग कहां जलती हैं ये ऐसे कायर जो दुश्मन से भी डरते है अपने ही गद्दार हैं जिनको सब नेता कहते हैं कूर्सी खातिर कई मासूमों को बलि चढ़ाते हैं दुश्मन से दोगुना है देश हमारा फिर भी हम ही मरते हैं अरे हाथ बांध रखे है दिल्ली ने वरना शेर कहां गीदड़ से डरते हैं एक मौका दो कि ये भूखे शेर भी दहाड़ दें , और अतंकवाद को पृथ्वी के नक्शे से उखाड़ फेंक दे V.S.diwakar ©Virendra Singh Diwakar

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वरना सोने की लंका में आग कहां जलती हैं
ये ऐसे कायर जो दुश्मन से भी डरते है
अपने ही गद्दार हैं जिनको सब नेता कहते हैं
कूर्सी खातिर कई मासूमों को बलि चढ़ाते हैं
दुश्मन से दोगुना है देश हमारा फिर भी हम ही मरते हैं
अरे हाथ बांध रखे है दिल्ली ने
वरना शेर कहां गीदड़ से डरते हैं

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