हिंदी दिवस
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मौका था हिंदी दिवस का
लेकिन बिडंबना की
हिंदी घबराई हुईं हैं
लग रहा था सब
औपचारिकता हैं और डरी सहमी
हिंदी कह रही थी
छोड़ो न मुझे याद करना
बोली मैं रहूँगा अभी लबे समय
थोड़ी कमजोर सी
गिरती पड़ती अपाहिज़ सी
बाजार से दूर कसबो मे
गांव जवार मे
सरकारी स्कूलों मे
हा यादो मे
©ranjit Kumar rathour
हिंदी दिवस