नज़रें झुकाकर आप तो शरमाने लगे हैं। शायद ख्वाब अक्
"नज़रें झुकाकर आप तो शरमाने लगे हैं।
शायद ख्वाब अक्सर रातों में आने लगे है।
उड़ते है चांद को पाने की चाहत में,
अभी तो बस चांदनी में नहाने लगे हैं।
डॉ कृष्ण चतुर्वेदी"
नज़रें झुकाकर आप तो शरमाने लगे हैं।
शायद ख्वाब अक्सर रातों में आने लगे है।
उड़ते है चांद को पाने की चाहत में,
अभी तो बस चांदनी में नहाने लगे हैं।
डॉ कृष्ण चतुर्वेदी