ठन गई !
मौत से ठन गई !
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे उसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खडी हो गई,
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई ।
मौत की उम्र क्या है?दो पल भी नहीं,
जिंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं,
मैं जी भर जिया,मैं मन भर मरूँ,
लौट कर आऊंगा,कूंच से क्यों डरूँ?
तू दबेपांव,चोरी-छिपे से न आ,
सामने से वार कर,फिर मुझे आजमा,
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई,रात बंशी का स्वर ।
बात ऐसी नहीं कि कोई गम नहीं,
दर्द अपने-पराये कुछ कम नहीं ।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी है कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाएं हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज तूफान है,
नाव भवरों की बाहों में मेहमान है,
पार पाने का क़ायम मग़र फैसला,
देख तूफ़ां का तेवर तरी ठन गईं,
मौत से ठन गई......"
©Deepti Shrivastava