हाथ में भर कर उड़ा भी सकता था
ये रंग फिजा पर छा भी सकता था
मुट्ठी भींच ली मैंने क्यों छुपाने को
रंग उन गालों पे सजा भी सकता था
नज़रें चुरा ली उसने मिलाकर एक बार
वरना आग दिल में लगा भी सकता था
उसकी यादों ने भटकने न दिया मुझको
ये नशा ख़राब है बहका भी सकता था
©Mohammad Anees "Rahi"
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